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नार्को टेस्ट अमूमन सच्चाई का पता लगाने के लिए किया जाता है। पुलिस अथवा जाँच अधिकारी अपराधी या आरोपी व्यक्ति से सच उगलवाने के लीये फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि की मौजूदगी में किया जाता है।

इस टेस्ट में अपराधी या आरोपी व्यक्ति को Truth Drug यानि एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है, जिससे उसका सचेत दिमाग सुस्त अवस्था में चला जाता है और उसकी लॉजिकल कैपबिलिटी कम हो जाती है।

इस स्थिति में उस व्यक्ति से किसी केस से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. चूंकि इस टेस्ट को करने के लिये व्यक्ति के दिमाग की तार्किक रूप से या घुमा फिराकर सोचने की क्षमता ख़त्म हो जाती है इसलिए इस बात की संभावना बढ़ जाती कि इस अवस्था में व्यक्ति जो भी बोलेगा सच ही बोलेगा।

यदि व्यक्ति बीमार, अधिक उम्र या शारीरिक और दिमागी रूप से कमजोर होता है तो इस टेस्ट का परीक्षण नहीं किया जाता है।

हाथरस केस से जुड़े सारे पुलिस अघिकारियों , प्रशासनिक अधिकारियों , आरोपियों, परिजनों, पत्रकारों और नेताओं का नार्को ही अब सच सामने लेके आयेगा।

और अगर कोई नार्को से भागने का बहाना बनाये तो?