लखनऊ। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी छोड़ने का एलान कर दिया। उनके अलावा पिछड़ी जाति के मंत्री दारा सिंह चौहान और अन्य 5 पिछड़े विधायकों ने भी बीजेपी का साथ छोड़ा है। स्वामी प्रसाद मौर्य ये दावा कर रहे हैं कि जिस तरह 2017 में बीएसपी छोड़कर उन्होंने उसे कहीं का नहीं छोड़ा, वैसे ही इस बार बीजेपी का हाल करेंगे। मौर्या तो सोशल मीडिया पर साँप-नेवला खेलने में भी लग गए।

स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने के बाद वही बीजेपी कह रही है कि जो व्यक्ति इतना बड़ा नेता होने के बाद भी पिछली बार 1 लाख वोट न ला सका और अपने बेटे और बेटी को दो बार जितवा न सका, उसके जाने का कोई असर पार्टी पर नहीं पड़ने जा रहा है। ऐसे में सबकी निगाह एक बार फिर स्वामी प्रसाद मौर्य के दावे पर टिक गई है। तो चलिए आंकड़ों से इसकी पड़ताल कर लेते हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर जिले की पडरौना सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं। साल 2017 से पहले वो बीएसपी में थे। मायावती से अनबन के बाद वो बीजेपी में आए थे। बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया था। चुनाव में स्वामी प्रसाद को 93649 वोट मिले थे। पहले के चुनावों की बात करें, तो स्वामी प्रसाद मौर्य साल 2007 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती की जबरदस्त लहर के बावजूद डलमऊ सीट से विधानसभा का चुनाव हार गए थे। बाद में पडरौना सीट से उपचुनाव जीतकर वो विधायक बने थे। बीजेपी के सूत्र कह रहे हैं कि स्वामी का इतना असर 2017 में उनकी ही पुरानी सीट पर नहीं दिखा, तो अब बीजेपी को मिटा देने के जो दावे वो कर रहे हैं, वो हकीकत में बिल्कुल गलत हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट की। उत्कृष्ट को स्वामी प्रसाद दो बार चुनाव लड़वा चुके हैं, लेकिन बेटे को वो जिता नहीं सके। साल 2012 में उत्कृष्ट ने रायबरेली की ऊंचाहार सीट से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। यहां से वो जीत नहीं सके। इसके बाद स्वामी प्रसाद पर साल 2017 में खुद मायावती ने आरोप लगाया कि वो फिर बेटे और बेटी संघमित्रा के लिए टिकट मांग रहे हैं। इसी बात पर अनबन के बाद मायावती ने स्वामी को पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद बीजेपी में वो आए। बेटे उत्कृष्ट को इस बार बीजेपी ने ऊंचाहार से टिकट दिया, लेकिन बीजेपी की जोरदार लहर के बाद भी उत्कृष्ट इस सीट को निकालने में नाकाम रहे।

उत्कृष्ट को दोनों बार समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार पांडेय ने उन्हें हराया है। उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य पिछली बार बीजेपी के टिकट पर सांसद बनी थीं, लेकिन इससे पहले साल 2014 में बीएसपी टिकट पर मैनपुरी सीट और 2012 में एटा जिले की अलीगंज विधानसभा सीट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

बीजेपी के साथ ओबीसी वोटर की बात करें, तो साल 2009 से पहले उसके पास 20 से 22 फीसदी इस वर्ग के वोटर थे। साल 2014 में बीजेपी को यूपी में करीब 34 फीसदी ओबीसी वोटर का साथ मिला। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 44 फीसदी ओबीसी वोटरों ने बीजेपी को वोट दिया। इसमें भी बड़ा तबका उस ओबीसी वोटर का था, जिसे अब तक बाकी दल किसी काम का नहीं मानते थे।