केंद्र सरकार ने भले ही कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट को चिंता की वजह माना है और इसके चलते लोगों में कई तरह की आशंकाएं भी बढ़ी हैं। लेकिन एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने इस बारे में स्पष्ट किया है उनका कहना है कि अब तक ऐसा कोई डेटा नहीं मिला है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि डेल्टा प्लस वैरिएंट के चलते ज्यादा मौतें हुई हैं या इसका संक्रमण तेजी से फैल रहा है।
इसके अलावा एक और जानकारी देते हुवे उन्होंने बताया कि कोरोना वैक्सीन को मात देने की बात भी किसी डेटा से पुष्ट नहीं होती। रणदीप गुलेरिया ने कहा कि यदि कोरोना से निपटने के लिए तय प्रोटोकॉल का पालन किया जाए तो हम किसी भी नए उभरने वाले वैरिएंट से सेफ रहेंगे।
इसके अलावा कोरोना वैक्सीन की दो डोज में अलग-अलग वैक्सीन लगाने की बात पर उन्होंने यह भी कहा कि इस संबंध में और अध्ययन किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि यह अधिक प्रभावी हो सकता है, लेकिन इस पर अधिक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान अध्ययन के आधार पर इस प्रयोग को लागू नहीं किया जा सकता है। उनका यह बयान ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक हालिया अध्ययन के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि एस्ट्राजेना और फाइजर के टीकों को मिलाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
भारत में डेल्टा प्लस वैरिएंट का पहला केस 11 जून को मिला था। यह डेल्टा वैरिएंट से ही तब्दील होकर बना है। अब तक भारत समेत 12 देशों में इसके केस मिल चुके हैं। इसके अलावा भारत की बात करें तो राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और कर्नाटक समेत 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में डेल्टा प्लस वैरिएंट के केस मिले हैं। हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक देश भर में अब तक डेल्टा प्लस वैरिएंट के 51 केस मिल चुके हैं। अब तक कोरोना की बुरी मार झेलने वाले महाराष्ट्र में ही इसके भी सबसे ज्यादा केस मिले हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश और केरल का स्थान है।