Devasthanam Board दो साल से चली आ रही खींचतान के बाद आखिरकार उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को सरकार ने भंग कर ही दिया। सरकार इससे संबंधित अधिनियम को वापस लेने जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम को निरस्त कर देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की घोषणा की। इस संबंध में गठित उच्च स्तरीय समिति व मंत्रिमंडलीय उपसमिति की रिपोर्ट के आधार पर यह निर्णय लिया गया।

देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम और इसके तहत गठित देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों में उत्पन्न रोष को देखते हुए धामी सरकार ने यह निर्णय लेने के संकेत दे दिए थे। मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने बीते सोमवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपी थी। रिपोर्ट मिलने के बाद मुख्यमंत्री ने इस पर निर्णय लेने में देर नहीं लगाई। मंगलवार को उन्होंने अधिनियम को निरस्त कर बोर्ड भंग करने की घोषणा कर दी। साथ ही कहा कि संबंधित अधिनियम को वापस लेने की कार्यवाही की जा रही है। आगामी विधानसभा सत्र में इसे वापस लिया जा सकता है। धामी सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को लेकर भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार का फैसला पलट दिया।

बीते रोज मुख्यमंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट

हालांकि, देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के खिलाफ हक-हकूकधारियों और पंडा समाज में जिस तरह असंतोष पनप रहा था, उसे देखते हुए धामी की पूर्ववर्ती तीरथ सिंह रावत सरकार ने भी बोर्ड पर कदम पीछे खींचने के संकेत दिए थे। बीते जुलाई माह में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की। समिति ने हाल में अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। मुख्यमंत्री ने समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए तीन कैबिनेट मंत्रियों सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल व स्वामी यतीश्वरानंद की मंत्रिमंडलीय उपसमिति गठित की। साथ ही उपसमिति को दो दिन के भीतर अपनी संस्तुति देने को कहा था।

मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट का अध्ययन कर बीते रोज मुख्यमंत्री को अपनी संस्तुति सौंपी। सरकार ने पहले ही साफ किया था कि 30 नवंबर तक इस विषय पर वह निर्णय ले लेगी। इसीलिए तीर्थ पुरोहितों से मंगलवार तक धैर्य बनाए रखने का आग्रह किया गया। सरकार ने मंगलवार सुबह यह फैसला लिया। पिछले दो साल से देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ-पुरोहितों और सरकार के बीच टकराव बना हुआ था। विपक्षी दल भी बोर्ड के गठन का विरोध कर रहे थे। चुनाव से ठीक पहले सरकार ने टकराव को टालते हुए देवस्थानम बोर्ड पर कदम पीछे खींच लिए।