नए कृषि कानूनों के विरोध में धरनास्थल पर बैठे किसानों के समर्थन में पिछले दिनों पत्रकार रवीश कुमार अपने कई प्राइम टाइम कर चुके हैं। इन प्राइम टाइम में रवीश कुमार की भाषा केंद्र सरकार पर निशाना साधने वाली और किसानों की माँगों का समर्थन करने वाली रही।

गौरतलब हो कि यही रवीश कुमार साल 2015 में इन किसानों की हालात पर चिंता जताते हुए बता चुके थे कि “मंडियों में किसान आढ़ती के चंगुल में फँसा हुआ है, जहाँ उन्हें गुलाम बनाया जा रहा है।” सोशल मीडिया पर रवीश कुमार का साल 2015 का लेख अब दोबारा शेयर होना शुरू हुआ है। इस लेख को आगे बढ़ा कर उन लोगों से इसे पढ़ने की अपील की जा रही है कि जो प्रदर्शनकारियों की माँग को उचित बता रहे हैं और रवीश कुमार को सच्चाई दिखाने वाला पत्रकार कह रहे हैं।

सोशल मीडिया पर पत्रकार सुशांत सिन्हा ने इसे साझा करते हुए वीडियो बनाया है और रवीश कुमार के दोहरे चरित्र को बखूबी उजागर करने का काम किया है। जो रवीश कुमार 5 साल पहले मंडी व्यवस्था को कोसते नही थकते थे आज वही रवीश सिर्फ मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए समर्थन में रोज लंबी लंबी पोस्ट और प्राइम टाइम कर रहे है।

बता दें कि रवीश कुमार के इस लेख में उन्होंने किसानों की हालत पर चिंता जताई थी और खेती को संकट में बताया था। इस लेख में उन्होंने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के अनुभवों के आधार पर मंडियों को दम भर के कोसा था। उन्होंने मंडी में आढ़तियों के पास ऊपज बेचने की प्रक्रिया और उनके कारण शोषण झेल रहे किसानों पर अपनी बात रखी थी।

अब इस लेख में रवीश कुमार के ही शब्दों को पढ़िए और अंदाजा लगाइए कि आज वरिष्ठ पत्रकार अपना प्रोपगेंडा चलाने में कैसे अपने अनुभवों की हकीकत को भुला चुके हैं। इस लेख में लिखा है “एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहाँ किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं।”