नई दिल्ली। 2 जून अवधि भाषा का शब्द हैं जिसका अर्थ वक्त या समय होता हैं। दो जून की रोटी वैसे दो ये एक साधारण सा मुहावरा हैं लेकिन इसका जून महीने से कोई संबंध नही हैं। यह कब और कहा से आया ये भी नही पता, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ कुछ अलग ही हैं। दो जून की रोटी का मतलब है, कड़ी मेहनत के बाद भी लोगों को दो समय का खाना नसीब नहीं होना। या यूं कहें तो कड़ी मेहनत के बाद दो वक्त का खाना मिलना।
इसी मुहावरे पर आज 2 जून को कवि कुमार विश्वास ने अपने फेसबुक वॉल पर खाने की थाली पोस्ट की और लिखा “2 जून की रोटी।” कुमार विश्वास के इस पोस्ट की बहुत से यूजर्स ने तारीफ करी और सकारात्मक प्रक्रिया दिया। लेकिन कुछ लोगों को विश्वास का यह पोस्ट रास नही आया और उनपर किसानों के समर्थन में कोई पोस्ट न करने को लेकर निशाना साधा।
ऐसे ही एक यूजर जिनका नाम है नावेद उल अजीम ने लिखा, “किसानों की वजह से नसीब होती है ये रोटी,, फिर भी उनके समर्थन में एक शब्द नही फूटा तुम्हारे मुंह से।
समर्थन कहीं और है या लगाम किसी और के हाथ में है ???”
प्रिय नावेद उल अजीम जी, पहले तो आपको “तू-तड़ाक की भाषा सिखाने के वाली परमं पूज्य आपकी अम्मी को मेरा राम-राम निवेदित करे। अब रही इस थाली की बात तो इसमें मेरे स्वयं के द्वारा अपने खेतो में पैदा किया हुआ अन्न है। बैगन व घिये की शब्जी यही पैदा हुई है। चने की दाल जो घिये कक शब्जी में है वो भी हमने KV कुटीर में ही पैदा किया है। रायता मेरी गौशाला के गाय की दही से बना है। गुड़ अपने ईख का है खीरा ककड़ी भी यही उपजाई हुई है…
कुमार विश्वास का पूरा जवाब नीचे इमेज में है-
अंजलि मित्तल नाम की एक यूजर ने इस पर लिखा, “Naved Ul Azim कम से कम प्लेट में किसी मासूम का शरीर तो नही । किसानों के समर्थन में क्या तुम खुद हर बार भोजन करते हुए धन्यवाद करते हो । सब अपने अपने हिस्से का काम करते है किसान अपने दुकानदार अपने मजदूर अपने । किस किसका शुक्रिया करते हो । मेरे विचार से एक अल्लाह के शुक्रिया में सब आ जाते है । तमीज सीखो । उम्र की इज्जत नही कर सकते तो इंसान की करलो।”